कहीं मै बनारस की शाम तो नहीं

मै होऊ शाम बनारस की
तुम गंगा आरती धाट बनो

मै मूरत होऊ जिस मंदिर की तुम उसका कोई कपाट बनो
मै होऊ शाम बनारस की तुम गंगा आरती धाट बनो

मै किनारा हो जाऊ तुम बनकर नदी कोई बहाना
जब डूबू सांझ को सूरज सा तुम मेरी लाली में रहना

मै कोई गोताखोर बनूं तुम सिक्का एक का हो जाना
जब बनूं किसी पुरवाई सा आगोश में मेरी सो जाना

मै कोई रेशम का कीड़ा तुम मुझसे निकला पाट बनो
मै होऊ शाम बनारस की तुम गंगा आरती घाट बनो

मै गंगा नदी कुलीन पवित्र तुम होना अविचल विश्वनाथ
मै हो जाउ जब गौतम बुद्ध तुम बनना ज्ञान का सारनाथ

मै मणि कर्णिका घाट बनूं तुम बनना राख किसी तन की
सारे कर्मो का एक चरण हो जाना निर्मय जीवन की

मै नृत्य करू नटराज सा जब तुम शिव ताडव का पाठ बनो
मै होऊ शाम बनारस की तुम गंगा आरती घाट बनो

मै जब चटकरा पान बनूं तुम कोई मुसाफिर हो जाना
मै रस भरी रबड़ी बनूगा जब तुम धुलकर मुझमें खो जाना

मै उत्तर से वरुणा बन आऊ दक्षिण से तुम बन जाना असी
मिलाकर के दोनों पवित्र परम बनायेगे शहर ये वाराणसी

जहा ज्ञान धर्म इतिहास खड़ा तुम शिव नगरी वो विराट बनो
मै होऊ शाम बनारस की तुम गंगा आरती घाट बनो

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