छुप छुप के मिलने का मजा आएगा

ढूढते हो क्या इन आखो में कहानी मेरी 
खुद में गुम रहना तो आदत है मेरी  


ना जाने दिल को क्या हुआ है यह किसी की ना सुनता है 
सिवा तुम्हारे यह बात किसी की मानता नहीं 

अपने इन शरबती होठो को किसी रुखसार में छुपा लो 
मोहतरमा गर्मी का मौसम है शर्बत लगी रहती है हमें 

न आयत में न ही इनायत में न चाहत में 
न ख्वाहिश  में मोहब्बत तो बस्ती है सिर्फ रूह की इबादत में 

उन्हें चाहना हमारी कमजोरी है उन से कह न पाना हमारी मज़बूरी है 
वो क्यों नै समझते हमारी ख़ामोशी को क्या प्यार का इजहार करना जरुरी है 

हज़ारो ख़्वाब टूटते है साहब 
तब जाकर कही सुबह होती है 

फासले तो बढ़ा रहे हो मगर इतना याद रखना 
मोहब्बत बार बार इन्शान पर मेहरबान नहीं होती 

तुम तो शरारत पे उतर आये ये कैसी चाहत पे उतर आये 
दिल क्या दिया तुम्हे अपना तुम तो हुकूमत  आये 

तुम दूर रहो या पास बस अपनी सलामती बताया करो 
जब भी नज़रे ढूढ़ तुम्हे तुम online आ जाया करो 

मीठी यादो के साथ गिर रहा था 
पता नहीं क्यों फिर भी मेरा वह आशू खारा था 

तजुरबा मोहब्बत का भी जरुरी है जिंदगी के लिए 
वरना दर्द में भी मुस्कुराने का हुनर कहा से आएगा 

सुनो चलो आज मिल कर सुलह कर लेते है 
दिल आप रख लो और हम आपको रख लेते है 

कुछ और तो नहीं है मेरे गरीब दामन में 
अगर काबुल हो तो अपने होठो को हसी दे दू 

प्यार तो जुए के खेल की तरह है साहब 
जिसके जज्बात सच्चे है उसकी हार पक्की है 





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