लफ़्ज़ों से कहां लिखी जाती है..
ये बेचेनिया मोहब्बत की..
मैने तो हर बार तुम्हें...
दिल की गहराइयों से पुकारा हैं...
करीब ना होते हुए भी करीब पाएँगे पाएँगे मुझे.. |
ऐसी बेरुखी भी देखी है हम ने,
लोग आप से तुम...
तुम से जान...
जान से अनजान तक हो जाते है !...
करीब ना होते हुए भी करीब
पाओगे हमें क्योंकि...
एहसास बन के दिल में उतरना
आदत है मेरी....
कौन मेरी चाहतों का फसाना समझेगा इस दौर में
यहाँ तो लोग अपनी जरुरत को मोहब्बत कहते है।
हर कोई अपने मतलब की बात करता है,
नहीं सोचता कि दिल सामने वाले का भी दुखता है,,,,
तुम मेरी चाहत हो दिलों से... |