हर मर्ज इजाल नहीं दवाखाने में
कुछ दर्द चले जाते है सिर्फ मुस्कुराने से
न ये महफ़िल अजीब है न ये मंजर अजीब है
जो उसने चलाया वो खनजर अजीब है
न डूबने देता है न उबरने देता है
उसकी आखो का वो समन्दर अजीब है
गैरत इतनी है के अपने लिए किसी दर पर झुका नहीं
बेगैरत इतना हूँ की तेरे लिए कोई दर छोड़ा नहीं
ek baar jo tum puche lete kya gham hai
kya gham hai jo tum puch lete
door rah kar bhi jo samaya hai meri rooh mein
paas walon par wo shakhs kitna asar rakhta hoga
uto hum par usne lakh sitam kiye
bas hum hi pagal the jo us ke lakh ghum km kiye
मस्जिद खुदा का घर है पीने की जगह नहीं
काफिर के दिल में जा वह खुदा नहीं
ग़ालिब शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता जहा पर खुदा नहीं
मजबूरिया तुम पर आई
तनहा हम हो गए
न तुम होते
न हम रोते