अब तो होठों पे कुछ भी, दुआ भी नहीं,
वो बिछड़ता भी क्या,जो मिला ही नहीं।
एक खलिश थी,जो दिल में समाती गयी,
मुकद्दर से मगर कुछ, गिला भी नहीं।
अब तो होठों पे कुछ भी, दुआ ही नहीं,
वो बिछड़ता भी क्या,जो मिला ही नहीं।...
अब तो होठों पे कुछ भी, दुआ भी नहीं,
वो बिछड़ता भी क्या,जो मिला ही नहीं।
एक खलिश थी,जो दिल में समाती गयी...