जमाने के हर जख्म हसके सहे हमने
अफ़सोस इश्क पर मरहम हम लगा ना पाये
मोहब्त फिर कभी नहीं हो सकती है
वो भी एक थी और मेरे दिल भी एक। ...
मेरी तनहाइ का हर लम्हा आसुओ में तर है
अब किसको दोष दू जिसकी वजह सिर्फ तू है
लिफाफों में महफूज रख दिए कुछ कोरे कागज
खत लिख भी देते तो कोन जबाब आना था
सुना है अब अपनी मरजी से मारा जा सकता है
जिया भी जा सकता तो कितना अच्छा होता